भोपाल. यह सभी के लिए गर्व की बात है कि भीमबैठका जैसी प्री-हिस्टोरिक साइट मप्र में है। मैं यहां एक बात कहना चाहता हूं कि प्री-हिस्टोरिक साइट का अपना अलग महत्व होता है। इसे हमें मास टूरिज्म से दूर रखना चाहिए। हमारा फोकस मास टूरिज्म के बजाय क्वालिटी टूरिज्म पर होना चाहिए। इससे हम इस हिस्टोरिक प्लेस को इसी तरह से बनाए रखने में कामयाब हो पाएंगे। यह कहना है पुरातत्वविद् केके मोहम्मद का।
वे गुरुवार को राज्य संग्रहालय में राॅक आर्ट साेसायटी की ओर से डाॅ. वीएस वाकणकर काे समर्पित 24वें राष्ट्रीय अधिवेशन में बतौर मुख्य वक्ता बाेल रहे थे। इस अधिवेशन में प्रमुख सचिव संस्कृति पंकज राग, डॉ. एसबी ओटा आदि उपस्थित हुए।
पुरातत्वविद् केके मोहम्मद ने कहा कि भीमबैठका की साइट पर यदि मास टूरिज्म जाएगा तो वहां आवश्यकता से ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्पन्न होगी। जो भीमबैठका की कैव्स को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाएगी। हमें इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है कि इस साइट पर रिसर्च स्कॉलर, स्टूडेंट्स और सिर्फ ऐसे लोगों को जाने दें, जिन्हें इसका महत्व मालूम हो। रेप्लिका म्यूजियम बना दें। उदाहरण के तौर पर केके मोहम्मद ने यूरोप की दो साइट फ्रांस का लास्का और स्पेन के अल्तमेरा की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इन दोनों साइट में क्वालिटी टूरिज्म पर ही फोकस किया जा रहा है। यहां मास टूरिज्म बिल्कुल नहीं है। हमें भी यूरोप की तर्ज पर रेप्लिका म्यूजियम बनाना चाहिए।
मास टूरिज्म के लिए यह भी हैं ऑप्शन
उन्होंने कहा कि मास टूरिज्म के लिए हमारे पास दूसरी अन्य साइट भी हैं, जिन्हें संख्या में पर्यटक पहुंचने से किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। इसमें मुख्य रूप से खजुराहो, सांची, मांडू, भोजपुर मंदिर शामिल हैं। क्योंकि इन साइट में कुछ भी खोने के लिए नहीं है। उन्होंने कहा कि इन साइट के आसपास रहने वाले लोगों को ही उनका संरक्षक और गाइड बनाना चाहिए, ताकि वो यहां के स्टेक होल्डर्स बन सकें।
संरक्षण और डॉक्यूमेंटेशन का काम जारी
यहां पंकज राग ने कहा कि मानव के सांस्कृतिक विकास के प्रथम चरण के महत्वपूर्ण साक्ष्य यह शैल चित्र अमूल्य धरोहर हैं। भारत में वर्ष 1867-68 से शुरू हुई शैल चित्रों की खोज निरंतर जारी है। प्रदेश में विद्यमान शैलचित्र कला स्थलों के डाक्यूमेंटेशन, संरक्षण का काम जारी है।